"बौद्ध, जैन तथा चार्वाक: दर्शन और प्रासंगिकता" विशेषांक

"बौद्ध, जैन तथा चार्वाक: दर्शन और प्रासंगिकता" विशेषांक 

"बौद्ध, जैन तथा चार्वाक: दर्शन और प्रासंगिकता" शीर्षक से प्रकाशित यह विशेषांक भारतीय दार्शनिक परंपरा की तीन महत्वपूर्ण धाराओं  बौद्ध, जैन और चार्वाक दर्शन पर केंद्रित है। यह ग्रंथ इन दर्शनों के मूलभूत सिद्धांतों, ऐतिहासिक विकास तथा आधुनिक समाज में उनकी प्रासंगिकता को गहन विश्लेषण के साथ प्रस्तुत करता है। इस विशेषांक का संपादन डॉ. कपिल कुमार गौतम द्वारा किया गया है और इसमें दर्शनशास्त्र के प्रतिष्ठित विद्वानों के शोधपरक लेख संकलित हैं।


यह ग्रंथ इंडियन पब्लिकेशन्स (Indian Publications) के तहत OpenMinded®  द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसका प्रथम संस्करण नवंबर 2024 में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक का ISBN 978-81-963936-2-5 है और यह समकालीन हस्तक्षेप नामक पीयर-रिव्यूड त्रैमासिक शोध पत्रिका के विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुई है। 


पुस्तक की विषयवस्तु और उद्देश्य

यह पुस्तक भारतीय दर्शन की गैर-वैदिक परंपराओं - बौद्ध, जैन और चार्वाक दर्शन - के व्यापक अध्ययन का प्रयास है। भारतीय दार्शनिक परंपरा केवल वेदों तक सीमित नहीं है; इसमें नास्तिक और तर्कप्रधान दर्शनों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बौद्ध और जैन दर्शन अहिंसा, नैतिकता और आत्मशुद्धि पर बल देते हैं, जबकि चार्वाक दर्शन तर्क, भौतिकवाद और अनुभववाद को प्राथमिकता देता है। यह विशेषांक इन तीनों विचारधाराओं के मूलभूत सिद्धांतों, उनके सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों तथा आधुनिक संदर्भों में उनकी प्रासंगिकता को उजागर करता है।


बौद्ध दर्शन के संदर्भ में दुःख, अनात्मवाद, क्षणिकवाद और प्रतीत्यसमुत्पाद जैसे सिद्धांतों की चर्चा की गई है, जो आज के मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता के लिए महत्वपूर्ण हैं। जैन दर्शन में अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांतवाद की भूमिका को समकालीन समाज में सहिष्णुता और नैतिक मूल्यों के प्रचार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वहीं, चार्वाक दर्शन तर्क और वैज्ञानिक सोच पर बल देता है, जो भौतिकवाद और आधुनिक युग की वैज्ञानिक मानसिकता से जुड़ा हुआ है।


अध्यायों का विवरण

इस पुस्तक में 14 अध्याय संकलित हैं, जो विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखे गए हैं। प्रत्येक अध्याय बौद्ध, जैन और चार्वाक दर्शन के किसी विशेष पहलू पर केंद्रित है:


  1. बौद्ध धर्म और दर्शन एवं वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता (डॉ. संदीप कुमार):  बौद्ध धर्म के वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवतावादी सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया है।
  2. बौद्ध दर्शन एवं शिक्षा का वर्तमान परिदृश्य (डॉ. नेहा गोस्वामी): शिक्षा प्रणाली में बौद्ध नैतिकता और व्यावहारिक ज्ञान की भूमिका।
  3. बौद्ध दर्शन की विशेषताएँ और इसकी प्रासंगिकता (कु. सुषमा): बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों जैसे अनात्मवाद, क्षणिकवाद, प्रतीत्यसमुत्पाद की चर्चा।
  4. आधुनिक जीवन में बौद्ध-दर्शन के ब्रह्मविहार की प्रासंगिकता (कमलेश अहिरवार): करुणा, मैत्री, मुदिता और उपेक्षा की अवधारणाओं की वर्तमान समय में उपयोगिता।
  5. महायान बौद्ध मत की अवधारणा : एक विमर्श (डॉ. रमेश रोहित): महायान शाखा के सिद्धांतों और उसके सामाजिक प्रभावों का विश्लेषण।
  6. श्रम संस्कृति का पूर्वइतिहास : एक अनुशीलन (शुभम महेश गजभिये): श्रम संस्कृति के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का अध्ययन।
  7. अभिधम्म पिटक : अवलोकन, वर्गीकरण एवं विशेषताएँ (अविनाश बर्मन): अभिधम्म ग्रंथों का गहन विश्लेषण।
  8. डॉ. अंबेडकर के बौद्ध धर्म के 'नवयान' के संदर्भ में विश्लेषण (डॉ. राजा राम): डॉ. अंबेडकर द्वारा प्रस्तावित नवयान बौद्ध धारा का अध्ययन।
  9. हिंदी साहित्य पर बौद्ध चिंतन का प्रभाव (राज कुमार): बौद्ध दर्शन के साहित्यिक प्रभावों की समीक्षा।
  10.  जैन दर्शन में पंचशील का नैतिक दृष्टिकोण (विकास मिश्र): जैन धर्म में पंचशील के नैतिक पहलुओं पर प्रकाश।
  11.  जैन दर्शन में प्रतिपादित पंचमहाव्रतों का स्वरूप एवं उपयोगिता (डॉ. ऋषिका वर्मा): जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की व्याख्या।
  12.  हिंदी का जैन साहित्य (डॉ. अनीश कुमार): जैन दर्शन का हिंदी साहित्य पर प्रभाव।
  13.  चार्वाक दर्शन और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता (डॉ. कपिल कुमार गौतम): चार्वाक दर्शन के भौतिकवादी दृष्टिकोण की समीक्षा।
  14.  चार्वाक दर्शन की प्रासंगिकता (शोभित द्विवेदी): वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कशक्ति पर आधारित चार्वाक दर्शन की उपयोगिता।


पुस्तक की विशेषताएँ

  • यह ग्रंथ भारतीय दार्शनिक परंपराओं के समग्र और तुलनात्मक अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकता है।
  • यह आधुनिक समाज में नैतिकता, अहिंसा, तर्कवाद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की भूमिका को स्पष्ट करता है।
  • सामाजिक समानता, न्याय और सहिष्णुता पर बौद्ध और जैन दर्शनों के प्रभाव को रेखांकित करता है।
  • चार्वाक दर्शन के माध्यम से आधुनिक वैज्ञानिक सोच और भौतिकवाद पर विमर्श करता है।
  • दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास, राजनीति और साहित्य में रुचि रखने वाले शोधकर्ताओं, छात्रों और पाठकों के लिए उपयोगी है।


निष्कर्ष

"बौद्ध, जैन तथा चार्वाक: दर्शन और प्रासंगिकता" पुस्तक भारतीय ज्ञान-परंपरा की बहुआयामीता को उजागर करती है और इसे आधुनिक संदर्भों से जोड़कर व्याख्यायित करती है। यह विशेषांक केवल ऐतिहासिक अध्ययन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वर्तमान समय की चुनौतियों, जैसे मानसिक तनाव, नैतिकता के ह्रास और सामाजिक असमानता के संदर्भ में इन दर्शनों की उपयोगिता को दर्शाने का प्रयास करता है।


जो पाठक भारतीय दर्शन के विविध आयामों, उनके समाज पर प्रभाव और वर्तमान युग में उनकी प्रासंगिकता को समझना चाहते हैं, उनके लिए यह ग्रंथ अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी सिद्ध होगा। पुस्तक खरीदने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करके पर WhatsApp (9431109143) मैसेज से संपर्क कर सकते हैं


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